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आचार्यनो उत्तर-तेवो दोष नथी, कारण केधर्मउपकरणमां साधुओने आमारूंछे, एवो परिग्रहनो आग्रह नथी. एज शास्त्रमा कलु छे के, ... "अवि अप्पणोऽवि देहमि, नायरंति ममाइउं"
सूत्रम् जे मुनिओने पोताना शरीरमां पण ममत्व नथी, ते वीजामां ममत्व केवी रीते करे ? (न करे.)
ફી રૂદ્રા जे अहीं कर्मबंधना माटे लेवाय तेज परिग्रह छे, पण जेनाथी कर्मनी निर्जरा थाय (कर्म ओछां थाय) ते परिगृहज नथी, (साधुनो लेप करवाथी पूर्वना तेल विगेरेना लेपमां वधारो थतो नथी, पण तेलने खाइ वस्त्र साफ बनावे छे. तेवी रीते जोइतुं उपकरण संयमनी रक्षा करे छे.) का छे केअन्नहा णं पासए परिहरिज्जा, एस मग्गे आयरिएहिं पवेइए, जहित्थ कुसले नोवलिंपिंजासि तिबेमि ॥
आ प्रकारे देखतो बनीने (विचार पूर्वक) परिग्रह छोडे जेम गृहस्थो तत्व जाण्या विना आ लोकना मुखना माटे परिग्रह सं-1 घरवा जुए छे, पण साधुओ तेम करता नथी, तेनो आशय आ छे. आचार्यने आश्रयी आ वधारानु उपकरण छे पण मारुं नथी, जेमां रागद्वेषन मूळ छे ते परिग्रहनां आंग्रहनो योग अहीं निषेधवो परंतु धर्म उपकरणनो निषेध न करवो, तेना विना संसार समुद्रथी पार जवाय नहीं. का छे केसाध्यं यथा कथञ्चित् स्वल्पं कार्य महच्च न तथेति । प्लवनमृते न हि शक्यं, पारं गन्तुं समुद्रस्य ॥१॥
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