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आचा०
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ग्रहो करवा तेथी शुं समजवुं ?
आचार्यनो उत्तर— सूत्रमां आपेल छे के
दुहओ छेत्ता नियाइ, वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं, उग्गहणं च कडासणं एएसु चैव जाणिजा (सू० ८९)
राग अने द्वेष वडे जे प्रतिज्ञा थाय छे, तेने छेदीने निश्चयथी जे करे ते नियाति एटले ज्ञान, दर्शन, चारित्र, नामनोज मोक्ष मार्ग छे, तेमां अथवा संयम अनुष्ठानमां अथवा भिक्षादिमां प्रतिज्ञा करे, एटले राग द्वेष विनानी प्रतिज्ञा गुणवाली छे. अने राग द्वेशवाली प्रतिज्ञा दुःखदाइ छे, हवे ते साधु उपरना गुणवालो राग द्वेषने छेदीने शुं करे ते कहे छे. पोते जोइतां वस्त्र, पात्र, कंबल, पादपुंछन विगेरे निर्दोष जाणीने ले, तेनी विधि बतावे छे.
पूर्व का मुजब जे गृहस्थो पोताना पुत्र विगेरे माटे आरंभमां वर्तेला छे. तथा पोताने जोहती वस्तुनो संग्रह करनारा छे, तेमने त्यां जइ लेवा योग्य वस्तुनी तपास करे एटले शुद्ध ने ले. अने दोषितने छोडी दे ते केवी रीते जाणे ते कहे छे.
वस्त्र शब्द लेवाथी वस्ती एषणा (शुद्धि) बतावी अने पात्र शब्द लेवाथी पातरांनी शुद्धि बतावी. कंबल शब्दथी आविक पातरानो नियोग गुच्छा विगेरे बताव्या, तथा सवार सांज के रातना कारण विशेषे खुल्लामां नीकळं पडे. तो ओढवानी कामळ पण सूचवी | तेज प्रमाणे पाद पुंछन ते रजोहरण (ओघो) जाणवो, आ सूत्रोथी ओघ उपधि अने उपग्रहीक उपधि बतावी तेज प्रमाणे वस्त्र एषणा तथा पात्रेपणा पण सूचवी.
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