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आचा०
काइने चालता थवं. आ मुनिन मौन छे. एटले मोक्षार्थि साधुनुं आ आचरण छे. तुंपण अनेक भव कोटिने भ्रमण करतां अमृल्य एवासंयमने, पामीने सारी रीते पाळजे, आम गुरु शिष्यने समजावे छे. अथवा पोताना आत्माने उपदेश आपे छे. के तु राग द्वेष न करजे.
चोथो उद्देशो समाप्त थयो.
सूत्रम्
॥३६४॥
ल
॥३६॥
हवे पांचमो उद्देशो कहे छे. तेनो आ संबंध छे आ लोकमां भोगोने तजीने संयम देह पाळवाने माटे लोकनी निश्राए विहार 5 करवो जोइए. ते आ उद्देशामां वतावे छे.
___ आ लोकमां संसारथी खेद पामेला भोगना अभिलाप तजेला मोक्षाभिलाषिए पोतानामां गुरुए स्थापन करेला पंच महाव्रत , भार वडे निर्वद्य अनुष्ठान करनारा मुनिए दीर्ध संयमनी यात्रा माटे देहर्नु परिपालन करवा लोकनी निश्राए विहार करवो जोइए, कारण के आश्रय विना देहनां साधन क्याथी थाय ? अने देह विना धर्म क्याथी थाय ? कयु छे के
"धर्म चरतः साधोलोंके निश्रापदानि पञ्चापि । राजा गृहपतिरपरः षङ्काया गणशरीरे च ॥१॥"
धर्ममां चालनारा साधुने लोकमां पांच निश्रानां पद छे, राजा गृहस्थ छकाय साधु समूह तथा शरीर ए पांच जाणवां वस्त्र, पात्र, अन्न, आसन, शयन, विगेरे साधनो छे. तेमां पण प्रायः निरंतर आहारनो मुख्य उपयोग छे. अने ते आहार गृहस्थ पासेथीज । 8 लेवानो छे. 'अने गृहस्थो जुदा जुदा उपायो वडे, पोताना पुत्र स्त्री विगेरे माटे आरंभमां प्रवतेला छे, तेमने त्यां साधुए संयम देहनी
SAHARASTROREGORECASHASTROD
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