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R॥३५९॥
अथवा गुरु महाराज कहे छे के जेना वढे कर्म बंधन थाय ते कृत्य तारे न करवं. एटले पापना काममां न वर्तवं अथवा जेना चाट बढे राजना उपभोग विगेरेनो कर्म बंध छे, ते न करवं. (एटले संयमथी राज मुख न वांच्छवू) अथवा जे साधुपणाथी मोक्ष थाय & सूत्रम्
IP तेज साधु जो भोगमां पडे तो मोक्षने बदले संसार भ्रमण थाय (माटे साधुए दरेक जग्याए विवेकथी वर्तवू.) 18 आ प्रमाणे अनुभवथी निश्चय करेलु छतां मोहथी हारेला जीवो सत्य वातने समजता नथी. आज हेतुनं विचित्रपणुं छे के जे
पुरुषो तीर्थकर प्रभुना उद्देशयी रहीत छे. तेओन मोह तथा अज्ञान वडे अथवा मिथ्यात्वना उदयथी तत्व संबंधी ज्ञान बंधाएलुं छे. है तेओ मोहनीय कर्मना उदयथी मृढ बने छे. अने तेओने स्रोओ भोगनुं मुख्य कारण छे, ते बतावे छे.
एटले युवान स्वीओना कटाक्ष अंगना चाळा सुंदर देखाव हाथना लटका विगेरेथी आ लोक (ससारी जीव समृह) आशा अने | अभिलापथी हारेला जीवो क्रूर कर्म करीने नरक विपाक फळरूप शल्यने मेळवीने ते दुर्गतिना दुःखरूप फळने विसरीने मोही सुमति (अंतरात्मा) ने विसरेलो प्रकर्षे करीने पीडाएलो पराजीत बने छे. एटले पोतेज परवश थाय छे. एटलं नहीं पण वीजाओने पण वारंवार खोटो उपदेश आपीने दुर्गतिमां लइ जाय छे. ते मृढो आ प्रमाणे बोले छे. आ स्त्री विगेरे उपभोगने वास्ते आनंदमां स्थान बनावेलां छे. एना विना शरीरनी स्थिति नज याय अने ते उपदेश तेओना दुःखना माटे थाय छे. एटले तेमनाकहेवाप्रमाणे चालनारने पण शरीर तथा मननां दुःखो भोगवां पडे छे. अथवा मोहनीय कर्म बंधाय छे, अथवा ते अज्ञानी बने छे. अने वारंवार तेमने मरणनां दुःख थाय छे. नरकमां जq पढे छे, त्यांथी नीकळीने तिर्यंच थर्बु पडे छे. आवधानो मूळ कारण स्त्रीमांमोह पामवानुं
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