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सूत्रम्
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भोगा मे व अणुसोयन्ति इहमेगेसिं माणवाणं (सू० ८२) बीजो उद्देशो कह्या पछी चोथो उद्देशो कहे छे
भोगोमां प्रेम न करवो. ए आ उद्देशायां छे. जेथी भोगीओने शुं दुःखो थाय छे, ते बतावे छे. पूर्वे पण तेज का छे के भो-18 गीओने कोइ वखते रोग उत्पन्न थाय छे. पूर्वे वताव्यु के संसारमा विपयी जीव परिभ्रमण करे छे. ते जीव आ दुःखोने पण भोगवे छे, आ प्रमाणे त्रीजा उद्देशानो संबंध छे. तथा एना पहेलांना सूत्रनो आ संबंध छे के चालक जेवो जोव प्रेममां पडीने काम भोग करे छे. ते काम दुःखरुपज छे. तेमां आसक्त थएला जीपने वीर्यनो क्षय भगंदर विगेरे रोगो थाय छे. तेथी कहे छे के का-3 मना अभिलापथी अशुभ कर्म बंधाय अने तेथीज मरण थाय छे, पछी नरकमां उत्पन्न थाय छे, अने नरकमांथी नीकळीने माना पेटमां वीर्यना बींदुमा उत्पन्न थइ कलल अर्बुद पेशी व्युह गर्भ प्रसव विगेरेनां दुःख भोगवां पडे छे. त्यार पछी मोटो थतां रोगोथाय
छे. आ वधू अशुभ कर्मचं फळ उदय आवतां थाय छे, ते रोगो बतावे छे, माथार्नु दुखवू पेटमां शूळ उठवी विगेरे रोगो थाय छे. g आ रोग उत्पन्न थतां जेनी साथे ते बसे छे. ते सगां तेने निंदे छे. अथवा चाकरी न थतां सगांने ते निंदे छे, वली गुरु कहे छे,
के हे शिष्य ! जे सगां उपर मोह राखे छे, ते सगां तेना भाग रक्षणना माटे थतां नथी, तेम तुं पण तेना प्राण शरणना माटे थवानो नथी. एवं जाणीने तथा जे कंद दुःख सुख आवे छे, ते पोताना कार्योनुंज माणीओ फळ भोगवे छे, तेथी रोगोनी उत्पत्तिमां नता न लाववी; तथा सुंदर भोगोने याद करवा नहि, तेथी" सूत्रमा का छे के" शब्द रूप रस गंध अने स्पर्श ए पांच विषयनो
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