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आचा०
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तेथी सर्वज्ञ वचन रूप दीवाने वधा पदार्थतुं स्वरूप खरेखरुं बतावनार जाणीने गुरु कहे छे. हे मुनिओ तेनो आश्रय तमे ल्यो. में आ मारी बुद्धिथी नथी कं. एवं सुधर्मास्वामी जंबूस्वामीने कहे छे, त्यारे कोणे कां ? ते कहे छे.
त्रणे काळमां जगत विद्यमान छे. एवं जे माने ते मुनि जाणवा अने ते त्रणे काळनुं ज्ञान जेने होय ते सर्वज्ञ तीर्थकर छे. तेमणे कं छे. तेओए अनेकवार पोताना पुन्य वळथी उंच गोत्र विगेरे मेळव्युं छे. अथवा प्रकर्षथी अथवा प्रथमथी ज्ञान प्राप्त थतांज वधा जीवो पोतानी भाषामां समजे तेवां वचनवढे तेमने उपदेश कर्यो छे. ते कहे छे.
नो-ओघ वे प्रकारे छे. द्रव्यओघ ते नदीनुं पूर विगेरे छे. अने भावओघ ते आठ प्रकारनुं कर्म अथवा संसार छे. ते आठ कर्मी संसारी जीव अनंत काळ भंगे छे. ते ओघने ज्ञान दर्शन अने चारित्ररूपी वहाणमां बेठेला मुनिओ तरे छे. अने जेओ थी तरता ते अनोतरा छे, अर्थात् जेओ मुनि धर्म पाळे छे तेओ तरे छे, अने जेओ ते धर्मने छोडी विषयना लालचु बने छे, ते जैनेतर अथवा जैन्मां पतित साधु छे. तेओ ज्ञान विगेरे उत्तम वहाणथी भ्रष्ट थवाथी तरवानो उद्यम करे तो पण संसार तरवा समर्थ थता नथी. तेज सूत्रमां कहूं छे
नो ओहं तरितए,
जे संसार तरता नथी ते अतीरंगमा छे, एटले तीर ते संसारनो पार तेनी पासे जबुं. ते तीरंगमा छे अने जेओ विषय रसमां पढे तेओ किनारे न जवाथी अतीरंगम छे. ते कोण ? ते कहे छे. जैनेतर अथवा प्रथम कहेला धर्म भ्रष्ट जैन साधु-ते बतावे छे.
सूत्र
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