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६ जुदी जुदी जातिमां सेंकडोवार भोगव्या छे. 'आचा० संते य अविभ्हइडं असोइउं पंडिएण य असंते । सक्का हु दुमोवमिअहिअएण हि धरतेण ॥ २॥ सूत्रम्
पंडित पुरुषेप्राप्तिमांआश्चर्य न करवू; अने अप्राप्तिमां नाखुश थ नहि. झाडनी उपमावाळा हृदयवडे हितने धारनारा पुरुषने शक्य छे. ॥३३५॥ (झाड बधां दुःख सहे; पण त्यांथी खसे नहि तेम हृदय स्थिर करी दुःखसुख सहेबां.)
2॥३३५॥ होऊण चक्कवट्टी, पुहइबई विमलपंडरच्छत्तो । सो चेव नाम भुजो अणाहसालालओ होइ ॥३॥
चक्रवर्ति के, पृथ्वीपति निर्मळ सफेद छत्रने धरनारो पहेलो पोते बन्यो; अने तेज पुरुष पोते रहेनारो (तेज जन्ममा) अनाथ | आश्रममा भाग्यवशथी बने छे. अथवा एक जन्ममा जुदी जुदी अवस्थानी नीच-उंचपणानी स्थिति कर्मवशथी अनुभवे छे, तेथी। उंच-नीच गोत्रनी कल्पना मनमांथी काढीने तथा बीजा पण मनना विकल्प दूर करीने शुं करवू ? ते कहे :
जीवोने संसारमा आवां उंच-नीच पद हमणा थाय छे. पछीथी थवानां छे, अने पूर्वे थयां छे, एवं विचारीने शिष्यने गुरु कहे छे केः-तारी तीक्ष्ण बुद्धिथी जाण के, जीवने कर्मवशथी सुख आवे छे, तेम दुःख पण आवे छे, तथा तेनां कारणो पण विचार, (जीवे जेवां पुन्य पाप कर्या होय; तेवां मुखदुःख मळे छे.) . वळीअविगान पणे प्रणीओ सुखने इच्छे छे. अहींयां जीवजंतु पाणी विगेरे शब्दोपयोग लक्षणवाळां द्रव्यना मुख्य शब्दोने छोडीने “ सत्तावाचि " शब्द “भूत" शब्दने लेबाथी एम सूचव्यु के, जेम आ उपयोग लक्षणवाळो पदार्थ अवश्य सत्ताने धारण
SIRSAGAR