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परवलवीरेण समं मंतइ सो आह देव! होसु थिरो । अन्ज रयणीइ सव्वं सुत्थं काउं समप्पेमि ॥७॥ तो करहाणं उवरिं सब्वेसिं तेण रयणिसमयम्मि । खित्ताउ सारीओ थोवं थोवं बलं तत्तो ॥८॥ वहुएहिं तुरेहिं गाढं वजंतढक्कमाईहिं । पट्ठवियं सव्वत्तो गयउरसामी पुणो जत्थ ॥९॥ सद्धिं सम्मं का गंतूणं निवडिओ सयं तत्थ | पाणग्गाहं राया सो निग्गहिओ तओ तेण ॥१०॥ तत्तो नायगरहियं सेन्नं सयलं पि लूसियं तेण | गयतुरयरहा कोसो सब्वं गहियं महुनिवेण ॥११॥ परबलवीरस्स इमो तुट्टो दिन्नं बहुं दविणजायं । मंडलमाईयं पुण कइया वि ण गिण्हए एसो॥१२॥ तो महुनिवस्स चित्ते संलग्गा वासणा इमा गाढं । जह चउरंगम्मि बले पाइका चेव सारंग ॥१३॥ एएहिं चिय जिप्पड़ बुद्धीइ इमाण चेव संचलइ । सेसं तुरगाइयं तो एए चिय निवाण हिया ॥१४॥ इय वासणावसेणं पाइके संगहेइ सो सुहडे । ता जाव मेलियाओ कोडीओ इमाण एएण ॥१५॥ तो तेसिं समवायं दट्टणं तूसए सया एसो । वलदरिसणं च गिण्हइ अभिउत्तो ताण अणवरयं ॥१६॥ किं बहुणा ताणं चिय कहाइ तह दरिसणेण चेट्टाए । रंजिजइ महुराया तेहिं चिय वेढिओ भमइ ॥१७॥ अह अन्नया विसूई उप्पन्ना तस्स नरवइस्स दढं । तो तीइ समकंतो मज्झ बलं मज्झ वरसुद्दडा ॥१८॥
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