________________
धणधन्नरयणसयणाइया य सरणं न मरणयालम्मि ।
जायंति जए कस्स वि अन्नत्थ वि जेणिमं भणियं ॥५२॥ किमन्यत्र भणितमित्याहअत्थेण नंदराया न रक्खिओ गोहणेण कुइअन्नो । धन्नेण तिलयसेट्ठी पुत्तेहिं न ताइओ सगरो।
सुगमा ॥ कथानकानि तूच्यन्तेपाडलिपुत्ते नगरे नंदो नामेण आसि नरनाहो । तस्स य नीइविरुद्धो अतिलोभो पसरिओ कह वि ॥१॥ तेण य अणहुंताई'आयहाणा कयाई दब्बस्स । विद्धिं च णेइ पुब्बिल्लियाई सब्वाइं अइलुद्धो ॥२॥ सव्वाई चयट्ठाणाई तह य संकोइयाई लोयं च । दंडइ लूसइ उम्भाविउं असंतं पि अवराहं ॥३॥ नाणाविहे उवाए चिंतंतो अत्थुवजणनिमित्तं । सुयइ विउज्झइ य तहा गिण्हइ य तहिं च सयलत्थे॥४॥ इय अन्नायपवनेण तेण संपीलिऊण जणनिवहं । अयसस्स निहाणाण य भरियं सयलं पि भूवलयं ॥५॥ विहिओ हाहाभूओ लोओ सव्वोऽवि हीरियासेसो। किं बहुणा ? निवियं नाणयनामं पि नियदेसे ॥६॥ | चम्ममयणाणएणं ववहारो तो पयटिओ तेण । सुयइ विउज्झइ भमइ य सबालवुडो जणो तत्थ ॥७॥ १. आयट्ठाणाई कुणइ दव्वस्स । विद्धि गमेइ पुब्बि-सर्वासु ।
॥२३॥