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________________ भवभावना मकरणे तत्तो गुरूहिं भणियं देवाणुपिए ! पवज्जसु जिणिदं । देवं विलीणरायं पंचमहव्वयघरे गुरुणो ॥ २१ ॥ गेहसु य दुवालसगिवियाई भत्तीइ तह य सत्तीए । अन्नं पि देहसज्यं करेसु जिणवंदणाईयं ॥२२॥ अह तीइ वियारे अवगंतुं तह य निययसत्तीए । पडिवन्नं गुरुवयणं संवेयगयाए तं सव्वं ॥२३॥ अह छुट्ठाओ पारइ सया वि जहसंभवं समायरइ । जिणवंदणाइ किचं वह विणण सम्वेसिं ॥ २४ ॥ इय जह जह कुणइ इमा धम्मं तह तह सपरियणस्सेव । जायइ इट्ठा वणिणो तम्भजाए य पइदियहं ॥ चाराविज्जइ न धणं पावइ इटुं च असणवत्थाई । कारिजइ न हु कम्मं अन्नं पि हु तेहिं तो एसा ||२६|| तत्थ य रम्मुज्जाणं महत्पभावस्स धणयजक्खस्स । विज्जइ एत्थ य एसा वचती गुरुसमीवम्मि ||२७|| विणियत्तंती य खणं वीसमइ इओ य नरवरिंदसुओ । मयरद्धओ त्ति नामं अइसयरूवाइगुणकलिओ ॥ आराहेउं तं जक्खमेइ वरभज्जपत्थणाहे । वीसममाणिं च तहिं किं पि सिद्धिं नियइ जउणं ॥ २९ ॥ अह अन्नाऽचिरेण तीए समजियबह्व्यपुन्नेहिं । भणिओ पेरिजंतेण तेण जक्त्रेण सो कुमरो ॥३०॥ रयणवनयर पहुणो नरवइणो अमरकेउनामस्स । जउणा नामेणेसा धूया नीसेसगुणकलिया ॥३१॥ नवरं पुत्र्वभवज्जिय पाउदएणं सयाइ जणणीए । पक्खित्ता इच्चाई कहिउं सव्वं पि जक्खेण ॥३२॥ भयं इह तु इमा संचियबहुविमलकुसलकम्मेण । लक्खियइ नियपावा ता वच्छ ! तुमं इमं बालं XXXXX धर्मेणैव सुखप्राप्तौ नरपति दुहित्राख्यानकम् ॥ ४४८ ॥
SR No.010801
Book TitleBhav Bhavna Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubodhchandra Nanalal Shah
PublisherGangabai Jain Charitable Trust Mumbai
Publication Year1986
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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