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अह झत्ति विसन्नो माणसम्मि चिंतेइ हंत! किं एयं? | नियहत्थेहिं मए च्चिय ववसियमसमंजसं कजं ॥ जेण न माड सएऽवि हु रंडासत्थो गिहम्मि पुरओऽवि । अन्ना वि का वि एसा अम्हाणं मत्थए पडिया ।। झिज्जइ य दयालुत्तं जउणाए पुणो पवाहयंताणं । चिट्ठउ एसावि हु कोढियस्स दद्वमा तम्हा ॥१०॥ जउण त्ति विहियनामा गिम्मि तो तस्स गरुयदुक्खेण । वड्ढंती सा जाया कमेण वरिसहपरिमाणा ॥ अह पट्टवेइ सेट्ठी चारणहे धणस्स अडवीए । वच्चइ साऽवि हु अवसा अइदुहिया गमइ दियहाइं ।१२। जाया जोव्वणसमुहा य अन्नया नयरबाहिरुजाणे | चारती गावीओ निसुणइ सिद्धतमहुरझुणिं ॥१३॥ तं अणुसरि बच्चइ जाव खणं ताव पुण्णिमससिं व । तारायणपरियरियं पेच्छइ सूरिं समुणिविंदं ॥ सिद्धंतत्थं तस्संतियम्मि सोऊण अमयनिस्संदं । संवेयगया पुच्छइ भयवं ! किं एत्तियं मज्झ ॥१५॥ दुक्खं चिय केवलयं ! नओ गुरू भणइ केत्तियं भद्दे ! | तुह दुक्खमिणं नारयदुहाई ताइं समासज्ज ॥ जेहि य न कओ धम्मो पमायबहुलेहिं मूढहियएहिं । किं ताण दुहमसुलहं तकारणविहियपावाणं ॥१७॥ न सुहाइ दुहं कस्स वि सुहाई सब्वोऽवि वंछइ तहा वि । सुहयं न कुणइ धम्मं न चयइ दुक्खप्फलं पावं । ता भद्दे ! उब्बिग्गा जइ दुक्खाणं सुहाणि अहिलससि । ता जिणवरिंदभणिए धम्मे च्चिय उज्जम कुणसु तो जउणाए भणियं भयवं! मह सव्वहा वि अधणाए | निच्चपराहीणाए होज णु काधम्म सामग्गी? |
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