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सा वि ह भीया सचिवस्स साहए सोऽवि चिट्ठए चुन्नी । एत्तो य नरिंदसुया अणंगसिरिनामिया तत्थ बहुपुत्तुवरिं जाया इट्ठा रन्नो तहेव जणणीए । जाओ तीसेवि हु एस वइयरो दिव्वजोएण ॥५७|| जम्हा सामंतसुए अणुरत्ता सावि अमरकेउम्मि | केणावि हेउणा सो परिणेउं तं न वंछेइ ॥५८॥
पियराणि वितं न हु देति तस्स तो छन्नपरिणयणहेउं ।
मन्नाविजइ सोऽवि हु मालइनामाए धाईए ॥५९॥ छम्मासाणं अंते पडिवजह सोऽवि तम्मि दियहम्मि । भणिओ य जहा एजह गेहगवक्खम्मि पच्छिमए लंबंतदोरियं चालिऊण होजसु तहिं सुपडिलग्गो । अन्भुवगए वि न गओ रायविरुद्ध ति एसो त्रि ॥११॥ एत्तो य दुग्गओ उट्ठिऊण संपत्तपवरसिंगारो । पेच्छणयदसणत्थं चलिओ मग्गट्टियं नियइ ॥१२॥ रमणीयमणंगसिरीपासायं तस्स हेट्टओ जाव | कोऊहलेण चिट्ठइ खणमेगं दोरियं ताव ॥३॥ दट्टणं लंबंतिं चालइ एमेव कुमरिसहियाहिं । तो भणिओ लग्गेजसु गाढं अह चिंतए एसो ॥१४॥ वीयं नाडयमेयं उवट्टियं किं पि हंत अहवा मे । किं चिंताए ? पमाणं एत्थ वि सवण्णुणो वयणं ॥६५॥ | तत्तो गाढं लग्गो नीओ आयड्डिऊण गेहुवरिं । ता मालईए पुव्वक्कमेण विहियं दुवेण्हं वि ॥६६॥ | पाणिग्गहणं तुट्टा भणइ सुहासीणबहुवरं तत्तो । उत्तिन्नो मे भारो अज कयत्था अहं जाया ॥६७॥
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