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एयं पि चउन्भेयं वोच्छिन्नं सुप्पइट्टियमुणम्मि । जमिमम्मि अपच्छिमओ सो चिय वीरेण बागरिओ | इह प्रमुखग्रहणादन्येऽप्यपर्यन्तास्तपोविशेषाः सन्ति, तेष्वपि मध्ये विनेयजनानुग्रहार्थ केचिद् || | दयन्ते-तत्र भद्रतपः प्रोच्यते, एतदपि लघुबृहभेदतो द्विभेदं, तत्र लध्वित्थमवसेयं-एक दुग तिन्नि |
चउरो पंचुववासेहिं होइ पढमलया। तिन्नि चउ पंच एक्को उववासद्गेण बीया उ ॥१॥ पण एक दोन्नि तिन्नि य'उववासचउक्कएण तइयलया । दो तिन्नि चउर पंच य एकुववासे चउत्थलया ॥२॥ पंचमलयाइ ॥ चउरो पण एक्कग दोन्नि तिन्नि उववासा । पणसत्तरि उववासा सव्वे पणवीस पारणया ॥३॥ अत्र || स्थापना--तिर्यग् | १|२|३|४|५ऊर्ध्वकोणेषु च गण्यमानेऽस्मिन् सर्वतः पंचदशागच्छंतीति, सर्वतोभटमतदच्यते. ३।४।५।१२ तदेवं लघु प्रतिपादितम् । अथ तदेव वृहत् प्रतिपाद्यते-एक्कग दुग MS
१५/१/२३४ तिग चउरो पंच २३४ापारछ सत्ता
छ सत्तोववास पढमलया। चउ पंच छ सत्तेगो दो तिन्नुववास बीया उ ॥१॥ ४/५।१/२ |३| सत्तेग दोन्नि तिन्नि य चउ पण छहिं चेव होइ तइयलया । तिग चउर पंच छ च य सत्तेग दुगे चउत्थी उ ॥२॥ छ चेव सत्त एको दुग तिग चउ पंचमेहिं पंचमिया । दुग तिग चउ पण छ चिय सत्तेक्कगएहिं छठ्ठी उ ॥४॥ पण छ च सत्त एक्कग दुग तिग चउरोववास सत्तमिया । छन्न उयसयं इह तवदिणाण गुणपन्न पारणया ॥५॥
॥ ४१३ ।।