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भवभावना प्रकरणे
मैथुनविषये श्रीपतिकथा
तीसे य रूवलायन्नमूढहिययस्स तस्स संजाओ। संबंधो तो सेवइ सो तीइ समं अणायारं ॥१०॥ इय तत्थ ठाइऊणं वासारत्ते गओ सगेहम्मि । कोसंबीए पुरीए वणियसुओ सिरिवई कमसो ॥११॥ वद्धावणयं काउंसो गुरुरिद्धीइ चिट्ठए तत्थ । तईसणथमह अन्नया य आणावए माया ॥१२॥ धूयं उज्जेणीओ मजणसालाइ मजणनिमित्तं । उवविट्ठस्स य पिउणो समागया सा तओ तेण ॥१३॥
दिट्ठा पविसंती मंदिरम्भि सो उण न तीइ उवलद्धो ।
तो सिरिवई धसक्कियहियओ चिंतइ अहो किमियं ॥१४॥ चउरो मासे निचं जीइ समं सेविओ अणायारो । सा मज्झ चिय धूया एसा गुरुपावनिलयस्स ॥१५॥ ता को पेच्छइ वयणं अन्नाणंधस्स मज्झ पावस्स?। कत्थ गयस्स य होही एरिसपावस्स मह सुद्धी? || तो जाव अज वि ममं न पेच्छए पावकारिणं एसा। ता वच्चामि कहं पि हु होमि अदिस्सो अहं जेण॥ परजुवइसंगमाओ अनियत्ताणं अणजचित्ताणं । इय पावपवित्तीओ हवंति इहपरभवदुहाओ ॥१८॥ इच्चाइ चिंतिउं अकहिउंच सो परियणस्स नीहरिओ। दारेण पच्छिमेणं गेहोववणस्स मज्झेण ॥१९॥
तत्तो जाव चिरेण विन नियत्तइ ताव परियणो भीओ। सब्वत्तो वि गवेसइ न य पावइ सुद्धिमत्तं पि ॥२०॥
॥३९४॥