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भवभावना प्रकरणे
तत्तो य नयरमजले हिंडइ अन्नऽनपवररूवाई। पेच्छंतोतं चेव य तो तरलक्खो त्ति से नामं ॥१३॥ संजायं सव्वजणे संपत्तो जोव्वणं च तो एसो । कुणइ विणासे बहुए पिया य पावइ उवालंभे ॥१४॥ , रिन्द्रियअह सिद्धिं चिंतासायरम्मि पडियं कयाइ दट्ठण | पभणंति वाणिउत्ता तुम्हाएसेणिमयमम्हे ॥१५॥ परवशतादेसंतरम्मि नेमो खिविऊणं पवर्णमि तो सेट्ठी । अणुमन्नइ एयं कयमिमेहिं तह चेव तो एसो ॥१६॥
कारणेन देसंतरेऽवि हिंडइ चक्खिंदियपरवसो निरिक्खंतो । रुवाइं अन्नया तो देवउले कत्थइ दिट्ठा ॥१७॥
. श्रेष्टिपुत्रपुत्तलियाओ अच्चन्भुयरूवातो निरिक्खमाणो सो । चिट्ठइ न करेइ भोयणाइयं परवसो जाओ ॥१८॥
। दुर्दशा तो वुद्धिमया केणइ वणिउत्तेणं कराविया अन्ना । वत्थमया पुत्तलिया पाहणपडिमाइ पडिछंदे ॥१९॥ • तत्तो पाहणमइयं गोवेउं तदुवरिं तु वत्थमई । ठावंति पुत्तियं तं पि चिट्ठए सो निरिक्खंतो ॥२०॥
तो वत्थमई नीया आवासे तीइ पिट्ठमणुलग्गो । तरलक्खोऽवि हु गेहे समागओ तं निरिक्खंतो ॥२१॥ पुरओ कयाइ तीए कुणइ यसो भोयणाइकिरियाओ। कयविक्कए य सरिए बलिया सव्वे सदेसम्मि ॥ आगच्छंता य पहम्मि लूसिया तकरहिं अडवीए । पुत्तलिया वि हु नीया तो तब्विरहम्मि तरलक्खो ॥ जाओ गहिल्लओ चेट्टए य असमंजसाई अह सब्वे । सामत्थंति मिलेउं वणिउत्ता जह पुरा सेट्री ॥२४॥ १. "णिमं अम्हे-वा० जे०J.॥
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