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कुसलमई नामेणं तस्स अमच्चो जसोहरो नामं । सेट्टी य तत्थ निवसइ पीई एयाण तिण्हं पि ॥३॥ तह कह वि जह विओयं खणमवि नेच्छंति भोयणाईहिं । अन्नोन्नमुवयरंता गमंति कालं तओ ताणं ॥४॥ जाओ एक्कसुओ तेऽवि हु तिन्नि वि समं अहीयंति । समगं भुंजंति भमंति जति नरवइसयासम्मि ॥ अह अन्नया य भणिओ सेट्टी सचिवेण जह सुओ तुज्झ | वच्चंतो रायहरे न सुंदरो जेण नरवइणो ॥६॥ |
मह तुज्झ पीइछेयं काही एसो त्ति सेट्ठिणा तत्तो।
भणियं अमच्च ! किं कारणं ति तो भणइ मंती वि ॥७॥ जं जं पेच्छइ एवं रमणीयं रमणिमाइयाण इमो | तं तं दिहि नसि चिट्ठइ सुइरं निरिक्खंतो ॥८॥ . दिट्ठो य मए एवं अणेगहा तो विणिच्छियं एसो । तरलक्खो पोढत्तं पत्तो गच्छंतओं एत्थं ॥९॥ रायउलम्मि विणासं काही संभावयामि अहमेवं । तो धरसु संगहेउं घरेऽवि कहमवि तओ सेट्ठी ॥१०
कुणइ तह चिय तह वि हुन ठाइ एसो निरुज्झमाणो वि । बच्चइ रायकुलाइसु चक्विंदियपरवसो जाओ ॥११॥ अह लक्खिओ निवेण वि सो तरलक्खोत्ति तेण पडिहारो। भणिऊण तो निसिद्धो तस्स पवेसो नियघरम्मि ॥१२॥
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