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भवभावना प्रकरणे
सुकोशलस्योपरि प्राणान्त उपसर्गः मोक्षप्राप्तिश्च
सहदेवी वि हु सुइरं सोयत्ता खिजिउ सुयविओए। अदृशाणोवगया जाया गिरिकंदरे वग्धी ॥४२॥ पियउत्ता वि हु मुणिणो तत्थेव गिरिम्मि ठंति वासासु | चाउम्मासियखमणे समइक्कतमि तो दोऽपि ॥ कत्तियपाडिवए पारणम्मि वसिमम्मि पट्टिया दिट्टा । वग्घीइ तीइ धावइ कयंतमुत्ति व्व तो एसा॥ पाणंतियमुवसग्गं नाउं तो दो वि ठंति उस्सग्गं । सुहभावणाइ चिट्ठति तत्थ परमक्खरे लीणा ॥४५॥ गिरिकूडम्मि वि तत्तो विज्जु ब्व इमा समुल्लसेऊण । निवडइ सुकोसले मुणिवरम्मि हणइ य चवेडाए ॥ पाडेऊण महीए जीवंतस्स वि तओ इमा तस्स | चरचरचरस्स तुट्टा उक्कत्तइ चम्ममंसाई॥४७॥ घोटेइ सोणियं अट्टियाई मोडेइ कडयडरवेण । गहिऊण तिक्खदाढानहरेहिं आमिसं असइ ॥४८॥
हिययस्सुवरि निविद्या परितुट्ठा माणसम्मि सा वग्घी।
इय मंससोणियाइं भंजइ पुत्तस्स वि पियस्स ॥४९॥ भंजंतस्स य एवं सुहभावणयाइ केवलं नाणं । उम्पन्नं तस्स महामुणिस्स जाओ य अंतगडो॥५०॥ कित्तिधरोऽवि हु साहू संसारसहावभावणानिरओ । खविऊण घाइकम्मं होऊणं केवली सिद्धो ॥५१॥ इय भममाणेहिं भवाडईए पियपुत्तबंधुमाई वि । भुजति वल्लहा विहु अन्नाणंधेहिं जंतूहि ॥५२॥ तीसे य सुकोसलभारियाए देवीविचित्तमालाए । जाओ हिरन्नगन्भो त्ति नाम पुत्तो महीवाली ॥५३॥
॥३४६॥