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________________ तदेवं बालत्वे न किंचित् सुखमिति प्रतिपादितं, तारुण्ये तद्भविष्यतीति चेत् इत्याहतरुणत्तणम्मि पत्तस्स धावए दविणमेलणपिवासा। सा का वि जीई न गणइ देवं धम्मं गुरुं तत्तं ॥ तो मिलइ कह वि अत्थे जइ तो मुज्झइ तयं पि पालतो । बीहेइ राइतक्करअंसहराईण निच्चं पि ॥२८३॥ वईते उण अत्थे वड्ढइ इच्छा वि कह वि तह दूरं । जह मम्मणवणिओ इव संतेऽवि धणे दुही होइ ॥२८४॥ तिस्रोऽपि पाठसिद्धाः ॥ कथानकं तूच्यते रायगिहं नाम पुरं तुरयखुरुक्खयरएण जत्थ जणो । पेच्छेन्ज न किंचि वि जइ समेज गयमयजलं न तयं ॥१॥ तं सेणियनरनाहो पालइ जस्सारिवग्गसेण्णाण | दिट्ठी खग्गलयाऽवि य दुसहा नीलुप्पलदलाभा ॥२॥ सयलंतेउरसारा देवी तस्सासी चेलणा नाम । जा सुहडकरहियअसिलयब्व परपुरिसदुद्धरिसा ॥३॥ ॥ २२५॥
SR No.010801
Book TitleBhav Bhavna Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubodhchandra Nanalal Shah
PublisherGangabai Jain Charitable Trust Mumbai
Publication Year1986
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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