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भव- भावना प्रकरणे
पूरइ अकालमेहेसु दोहलं तो कमेण एसावि । पसवइ पुत्तं वररूवलक्खणं उचियसमयम्मि ॥११॥
दोहलयं अणुसरि मेहकुमारो त्ति से कयं नामं । परिवढिओ य कमसो कलाओ सिग्छ अहिजेइ ॥ # अह जोब्वणमणुपत्तो अहिलसणिणं सुरंगणाणं पि । तो परिणइ धूयाओ नरेसराणं सुरूवाओ ॥१३॥
तत्थागओ कयाइ वि सिरिवीरजिणेसरो विहरमाणो । तस्संतिए सोउं जिणधम्म सावओ जाओ॥१४॥
हस्तिभवे मेघकुमारजीवेन अनुभूत दुःखविषये मेघकुमार कथा
अह विहरिऊण भयवं, पुणरवि तत्थाऽऽगओ तओ दिक्खं । मेहकुमारो गिण्हइ संविग्गो तस्स पासम्मि ॥१५॥
अहरायणियाइ तओ निसाइ संथारए खिवंताणं | साहणं संजाओ मेहकुमारस्स संथारो ॥१६॥ वसहीदुवारमूले वायणसंपुच्छणाइकजेसु। निंताण अइंताण य साहण पयाइसंघद्यो॥१७॥ हत्थे पाए सिरमाइएसु तहकह वि मेहसाहुस्स | संजाओ जह निद्दा न आगया सयलरयणि पि ॥१८॥ अह चिंतेइ गिहत्थं मं आढाइंसु साहुणो सब्वे । इम्हि पुण निस्संका किह पेच्छ कयत्थयंति दढं? ॥१९ तम्हा पभायसमए आपुच्छेउं जिणेसरं वीरं । गच्छामि गिहं अन्ज वि किं नटुं ? चिंति एवं ॥२०॥ समवसरणोवविठू सिरिवीरजिणम्मि वच्चए जाव । ता भयवया सयं चिय भणिओ तुह मेह ! रयणीए॥
॥ १९२॥