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वाहेऊण सुबहुयं बहा कीलेसु छुहपिवासेहिं । वसहतुरगाइणो खिजिऊण सुइरं विवजंति ॥११॥ आराकसाइघाएहिं ताडिया तडतड त्ति फुट्टति । अणवेक्खियसामत्थे भरम्मि वसहाइणो जुत्ता ॥ धणदेवसेद्विवसहो कंबलसबला य एत्थुदाहरणं । भरवहणखुहपिवासाहिं दुक्खिया मुक्कनियजीवा ॥".
सुगमाश्चतस्रोऽपि गाथाः, कथानकं तूच्यतेमग्गसिरकिण्हदसमीइ गिहिउं वीरजिणवरो दिक्खं । दिवसे मुहुत्तसेसे कुमारगाम समणपत्तो ॥१॥ रयणीइ नहिं सहिउं गोवुवसग्गं पभायसमयम्मि | सक्कभणिएण सद्धिं सिद्धत्थसुरेण विहरेइ ॥२॥ कोल्लागसन्निवेसे करेइ बहुलस्स बंभणस्स गिहे । छुट्ठस्स पढमपारणयमह तओ पिज्वयंसाण ॥३॥ दुइजतगतावसउडवे ठाऊण रयणिमेगं ति । सेसमुउबद्धकालं विहरित्ता अन्नठाणेसु ॥४॥ आगंतुणं पुणरवि उडवे तेसिं पितावसाणं च । वासारत्तं कुब्वइ अह जायं ताण अचियत्तं ॥५॥ तो वरिसयालमज्झे वि अइगए पढमअद्धमासम्मि । अट्ठियगामम्मि गओ खममाणो अद्धमासेण ॥६॥ पढमं च वड्ढमाणगनामो गामो य सो अहेसि त्ति | जह पुण अट्ठियगामो त्ति भन्नए तह निसामेह ॥ धणदेवो नामेणं सेट्टी भरि समग्गभंडाणं । सगडाणं पंच सए समागओ तस्समीवम्मि ॥८॥
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