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भवभावना
प्रकरणे
तत्तो सव्वो लोओ पत्तो पव्वाइयाइ गेहम्मि । डोए य अंविलीए पत्ते सा जायइ विलक्खा ॥५६॥ तो सव्वा विहु रिद्धी गहिया तीसे कया य सा दासी । भणिओ य देवदिनो तं सि ममं दासिदासो त्ति ॥५७॥
पडवन्नमिणं तेणं तत्तो तलहट्टए पइदिणं पि । विणणं तच्चरणे कुणइ य पव्वाइया कम्मं ॥ ५८ ॥ नामेण सोमदत्तो अउज्झनयरी आगओ एसो । ववहारिओ त्ति सयले लोए एवं पयासे ॥५९॥ विकि सलभंडाई सा तहिं देवदिन्नवणिओऽवि । नियदेसे ता गमणं होहि त्ति मणमि परितुट्टो | तो संवहिउं एसा जाव नियत्तइ सयम्मि देसम्मि । मोयावइ पव्वाइयमंगेण निहोरवेण निवो ॥ ६१ ॥ तोमोत्तणं एवं सरस्सई वच्चए सदेसम्मि | मग्गे य वयंतीए पयडेडं रमणिजणरुवं ॥ ६२ ॥ काऊ सिंगार उभडमइविम्हियावहं तीए । भणिओ य देवदिन्नो उवलक्खसि मं तुमं न उण ? ॥ अह विम्हइओ चिट्ठ जाव सतोसो तओ इमा भणइ । धूया सुंदरसत्थाहसेट्ठिणो तुह अहं भजा ॥ बालते परिणे मुक्का तुमए सरस्सई नामं । जिणधम्मं कुणमाणी ठिया अहं एत्तियं कालं ॥ ६५ ॥ इह तु ससुरएणं निसामिउं आवयं तुह समीवे । पेसवियाऽहं एतो परओ तं चेव जाणेसि ॥ ६६ ॥
विकले -
न्द्रिय
गतौ
प्रियंगुकथानकम्
॥ १२६ ॥