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भव
भावना प्रकरण
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एकेन्द्रिय गतौगमन कारणे धनप्रियकथानकम्
॥ धनप्रिय कथानकम् ॥ मज्झम्मि कुसहाजणबयस्स सोरियपुरं महानगरं । मारिजइ रोसो चिय हिययं चिय हीरए जत्थ ॥१॥ तत्थ य धणधन्नसुवन्नरयणसामी महिडि ढसंपन्नो। नामेण अत्थओ चिय धणप्पिओ अत्थि वाणियओ॥
सो य सयारंभपिओ मिच्छद्दिट्टी घरम्मि विहवम्मि । गहिणीए पडिबद्धो अन्नाणंधो गमइ दियहे ॥३॥ | तस्स य धणवइनामा गिहिणी पगईए भद्दया किंतु । ताण न विज्जइ पुत्तो तस्स कए दुक्खियाई बहुं ॥
अह तत्थ कोइ पुरिसो समागओ अन्नया परिभमंतो । वणिणा पुट्ठो एसो किं दि8 कोउयं किं पि? ।५। | तेण भणियं इओ चिय आसन्ना विजए महाअडई । नामेण दीहसाला आययणं तीए नेमिस्स ॥६॥ विजाहरेहिं विहियं रमणिनं तस्स चेव आसन्ने । भट्टारियाए चिट्ठइ आययणं जंबुनामाए ॥७॥ तत्येइ बह लोगो पुन्नेहोवाइएहिं गरुएहिं । जाणिस्सह तुज्झवि हु अहवा कज्जस्स सिद्धीए ॥८॥ इय कहिऊण गओ सो सेट्ठी धणवई य ण्हायाई । सेयाई पहाणाई वत्थाई नियंसि दोऽवि ॥९॥ सिरिखंडेणाऽलिहिउं तं देविं पूययंति भत्तीए | पवरकुसुमेहिं बलिणा सुयंधधूवेण तत्तो य ॥१०॥ पाएसु निवडिऊणं भणंति ते जइ य अम्ह होजाहि । पुत्तो तुह आययणे आगंतं तो विभूईए ॥११॥ १ 'लहि-वा०॥
॥ ११४॥