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भवभावना प्रकरण
मांसाहारे कुंजरनरेन्द्राख्यानकम्
अथ कुञ्जरनरेन्द्राख्यानकमुच्यतेसिंहपुरं नामेणं नयरं बहुरिद्धिनीइपरिकलियं । जत्थ परलोयतत्तिं कुणंति धम्मियजणा चेव ॥१॥ सीहगिरी नाम तहिं विक्खाओ नरवरो गुणसमिद्धो । जो सावओऽवि परमो सव्वावयविरहिओ निचं ॥ रज्जमणुपालयंतस्स तस्स अह अन्नया समुप्पन्ना | चिंता जह मज्झ निरत्थयाइं वचंति दियहाई ॥३॥ जइ होइ कह वि पुत्तो ता तं पयपालण निउंजेउं । गिण्हामि सयं दिक्खं चएमि एयाई पावाइं ॥४॥ एयं च कहइ चित्तं चित्तमइनामयस्स मंतिस्स | सावयधम्मम्मि समुज्जयस्स अह अन्नया रन्नो ॥५॥ अइवल्लहा सुरूवा विजया नामेण अग्गमहिसि त्ति । रयणिविरामे पेच्छइ पविसंतं निययउयरम्मि ॥६॥ भीमभुयंगं तत्तो नीहरि कुंजरं डसेमाणं । भीया तओ विबुद्धा रन्नो साहेइ तं सुमिणं ॥७॥
राया वि कहइ मंतिस्स भणइ तं सोऽवि देव ! न हु एसो ।
- होहि सुमिणो पसत्थो जम्हा होही सुओ एत्थ ॥८॥ | किंतु स तुम्हाण न सुंदरोत्ति जं डसइ जायमेत्तोऽवि | धम्मस्स कुणइ विग्धं तम्हा णियभायणेजस्स। संदरनामस्स इमं रज्जं दाऊण धिप्पए दिक्खा । जाए इमंमि पुत्ते सोऽवि ह गिहिजऊ दिक्खं ॥१०॥