________________
भयवं! भीमो मरि वञ्चिहिइ कहि ति पुच्छिए रन्ना । सूरी पभणइ नरवर ! एत्तो तइयहम्मि दियहम्मि॥ तेत्तीससागराऊ अपइहाणम्मि निरयवासम्मि | मरिऊण सत्तमाए पुढवीए नारओ होही ॥१२२॥ इय सो संविग्गो रामं रज्जम्मि ठावए राया। पउमं जुवरायपए सुमइंतु ठवेइ सचिवत्ते ॥१२३॥
तो मइसागरसहिओ कमलिणिपमुहाहिं तह य भजाहिं।
गिण्हइ दिक्खं राया सिरिदामो परमसंविग्गो ॥१२४॥ तत्तो काऊण तवं उग्गं थेवेहिं चेव दियहेहिं । गुरुणो सीसा य तहा सिद्धा सव्वेऽवि विहुयरया ।१२५। भीमोऽवि हु मरिऊणं सत्तमपुढविंगओ समुवट्टो । तत्तो भमिऊण भवं महाविदेहम्मि सिज्झिहिइ॥
॥ इति भीमाख्यानकं समाप्तम् ॥