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गीता छन्द-निर्मल सलिल शुभ वास चन्दन, घवल अक्षत युत अनी,
शुभ पुष्प मधुकर नित रमें, चरु प्रचुर स्वाद सुघि घनी। वर दीपमालं उजाल धूपाइन रसायन फल भले, करि अर्घ सिद्ध समूह पूजत, कर्मदल सब दलमले ॥ ते कर्मप्रकृति नसाय 'युगपत, ज्ञान निर्मल रूप है, दुख जन्म टाल अपार गुण, सूक्षम स्वरूप अनूप है। कर्माष्ट बिन त्रैलोक्य पूज्य, अछेद शिव कमलापती,
मुनि ध्येय सेय अमेय चाहूँ, ज्ञेय धो हम शुभमती॥ अथ एक सौ अठाईस गुणा सहित अर्ध। ॐ ह्री अष्टाविंशति अधिकशतगुणयुक्त सिद्धेभ्यो नमः पूर्णाऱ्या ।
श्रोटक छन्द। निरबाध सु तत्व सरूप लखो, इक लेश विशेष न शेष रखो। अति शुद्ध सुभाविक छायक है, नमूदर्श महासुखदायक है ॥
ॐ ह्री सम्यग्दर्शनाय नम अयं ।
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पंचम
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पूजा
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