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सिद्ध
लाल कपडे और श्रीफल से ढके हुए होना चाहिए। मडप को अष्ट प्रातिहार्य, छत्र, चवर आदि से सजाया जा सकता है ।
पूजा अभिषेक पूर्वक यदि करना हो तो अभिषेक पाठ पढकर अभिषेक करे, फिर दैनिक पूजा करके यह पूजा प्रारम्भ करे। सामग्री मडल पर न चढा कर थाल रकाबी मे ही चढाना चाहिए । आठ दिन तक मडल पर सामग्री पडी रहने से जीवोत्पत्ति हो जाती है ।
आठ दिन पूजा करने के पश्चात् नवे दिन पूर्णाहति करे। उस दिन कुड बनावे, १ चौकोर (तीयंकर) कु ड एक हाथ (मुट्ठिवाघे) लम्बा चौडा और गहरा होना चाहिए । इसमे । तीन कटनिया हो -पहली ५ अगुल की ऊ ची चौडी, दूसरी ४ अगुल ऊ ची चौडी तथा तीसरी, ३ अगुल की हो । चौकोर कुण्ड बीच मे हो, उसके उत्तर की ओर गोल कुण्ड (गणधर कुण्ड) हो और दक्षिण की ओर त्रिकोण कुण्ड (सामान्य केवली कुण्ड) हो । यदि ऐसा सम्भव न हो ? तो एक कुण्ड मे भी तीनो आकार बनाये जा सकते है। कुण्डो के चारो ओर लकडीकी है खूटियाँ गाडकर अथवा कलश रखकर मौली वाधना चाहिए । “उस समय ॐ ह्री अहं पचवण, । सूत्रेण त्रीन वारान् वेप्टयामि" यह मत्र पढना चाहिए।
जितने जाप्य किये जावे उसके दशमाश जाप्य मत्र की आहूतिया दी जानी चाहिए। । यदि सवालाख जाप्य किये हो तो माढे बारह हजार आहूतिया दी जानी चाहिए। हवन की
अष्टम