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दोहा--सूक्ष्मादि गुरण सहित है, कर्म रहित नीरोग। सिद्धचक्र सो थापहूँ, मिट उपद्रव योग।
इति यत्र स्थापन । (अथाष्टकं, चाल बारहमासा छन्द) चन्द्रवर्ण लखि चन्द्रकांतमरिण, मनतें श्रनै हुलसधारा हो। कंज सुवासित प्रासुक जलसो, पूजू अंतर अनुसारा हो। लोकाधीश शीश चूड़ामणि, सिद्धचरण उरधारा हो। चौसठि दुगुरण सुगुरण मरिण सुवरण सुमिरत ही भवपारा हो॥१॥
ॐ ह्री णमो सिद्धाण श्रीसिद्धपरमेष्ठिने एकसो अट्ठाईस गुणसयुक्ताय श्री समत्तणाणदसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गाहणं अगुरुलघुमन्वावाह जन्मजरारोग विनाशनाय जल ॥१॥ ६ सुमरण मणिधर जास वास लहि, मद तजि गंध लुभावत है। इ सो चंदन नंदनवन भूषण, तुमपद कमल चढ़ावत है ।लोकाधीश पंचर
ॐ ह्री णमो सिद्धाण श्रीसिद्ध परमेष्ठिने एकसौ पठाईसगुणसयुक्ताय श्री समत्तणाण पूज ईदसणवीर्य सुहमत्तहेव अवग्गाहणं मगुरुलघुव्यावाह ससारतापविनाशनाय चन्दन नि० ॥
चंपक ही के भूम भमरावलि, भूमत चकित चकराज भए,
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