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सिद्ध वि. ५२
दुख जन्म टाल अपार गुरण, सूक्षम स्वरूप अनूप है। कर्माष्ट विन त्रैलोक्य पूज्य, अदूज शिव कमलापती,
मुनि ध्येय सेय अमेय चाहूँ, ज्ञेय धो हम शुभमती ॥२॥ ॐ ह्री महंतजिनादिसिद्ध भ्यो नम पूर्णाध्य । (यहा १०८ बार जाप देनी चाहिये)
अथ जयमाला। दोहा--तीर्थंकर त्रिभुवन धनी, जापद करत प्रणाम । हम किह मुख वर्णन करै, तिन महिमा अभिराम ॥१॥
- चौपाई। जय भवि कुमुदन मोदन चंदा, जय दिनन्द त्रिभुवन अरविंदा । भव तप हरण शरण रस कूपा, मद ज्वर जरन हरण घन रूपा॥२॥ अकथित महिमा अमित अथाई, निर उपमेय निरसता नाई।
पिचम भालिंग बिन कर्म खिपाई, द्रव्य लिंग बिन शिव पद पाई ॥३॥ नय विभाग बिन वस्तु प्रमारणा, दया भाव बिन जिन कल्याणा। पंगु सुमेरु चूलिका परसै, गुंग गान प्रारम्भे स्वरसै ॥४॥