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________________ हस्तकमलमें अन्न मधुर रसदेत है, मधुकर सम जिय वचन गंधको लेत है। सिक मधुश्रावी यहऋद्धिभई सुखदायजू, भये सिद्ध सुखदाय जजू तिन पायजू वि० ॐ ह्री मधुनावी ऋद्धि ऋद्ध भ्यो नम अध्यं । ४७ अमृतसमाहार होय कर आयके, वचनामृत दै सुक्ख श्रवणमे जायक आमियरसयहऋद्धिभई सुखदायजू, भयेसिद्ध सुखदाय जजू तिन पायजू ॐ स्री मामियरसऋद्धि सिद्धेभ्यो नम अयं ।। जिस बासन जिस थान आहारकरै यती, चक्री सेना खाय अखै होवे अती अक्षीणरसी यहऋद्धि भई सुखदायजू,भयेसिध्द सुखदाय जजू तिनपाय, ॐ ह्री अक्षीणरसऋद्धि सिद्ध भ्यो नम अध्यं ।। सोरठा-सिद्धरास सुखदाय, वर्धमान नितप्रति लसे। नम्ताहि सिर नाय, वृद्ध रूप गुरण अगम है ॥४५॥ ॐ ह्री बड्ढमाण सिद्ध भ्यो नमः अध्यं । रागादिक परिणाम, अन्तरके अरि नाशके। लहि अरहंत सु नाम, नमों सिद्ध पद पाइया ॥४६॥ ॐ ह्री अरहन्त सिद्ध भ्यो नमः अध्यं । प्रथम numansunn
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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