________________
सिद्ध
मन योग सरलता धारै, तिस अन्तर भेद उधार। यो होय ऋजुमति ज्ञानी, नमू सिद्ध भये सुखदानी ॥१३॥
ॐ ह्री ऋजुमतिऋद्धि सिद्ध भ्यो नम. प्रध्य ।। बांके मनकी सब बातॉ, जाने सो विपुल कहाता। तुम पाय भये शिवधामी, नमू सिद्धराज अभिरामी ॥१४॥
__ॐ ह्री विपुलमतिऋद्धि सिद्धेभ्यो नम अध्यं । सुर विद्याको नहीं चाहै, निज चारित विरद निवाहै । दस पूर्व ऋद्धि यह पायो, भये सिद्ध मुनिन गुरण गायो॥१५॥
ॐ ह्री दशपूर्वऋद्धि सिद्वेभ्यो नम अयं । चौदह पूरव श्रुतज्ञानी, जाने परोक्ष परमानी। प्रत्यक्ष लखो तिस सारू, भये सिद्ध हरो अघ म्हारू ॥१६॥ ___ॐ ह्री चौदहपूर्वऋद्वि सिद्ध भ्यो नम अध्यं ।
सुन्दरी छन्द । । ज्योतिषादिक लक्षरण जानक, शुभ अशुभ फल कहत बखानिक। इनिमित ऋद्धि प्रभाव न अन्यथा, होय सिद्ध भये प्ररणम यथा ॥१७॥