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सिद्ध वि०
पदमात्र समस्त चितारे, है रिधि यह पद अनुसारे। यह पाय यतीश्वर ज्ञानी, भये सिद्ध नमू शिवथानी ॥८॥
____ॐ ह्री पादानुसारिणीऋद्धिसिद्ध भ्यो नम अध्य। जो भिन्न भिन्न इक लारै, शब्दन सुन अर्थ विचारै । यह ऋद्धि पाय सुखदाता, नसू सिद्ध भये जगत्राता ॥६॥
____ॐ ह्री सभिन्नश्रोतृऋद्धिसिद्ध'भ्यो नम अध्यं । मति श्रुत अर अवधि अनूपा, विन गुरुके सहज सरूपा। भयो स्वयंबुद्ध निज ज्ञानी, नम सिद्ध भये सुखदानी ॥१०॥
ॐ ह्री स्वयवुद्ध भ्यो नम अध्यं ।। जो पाय न पर उपदेशा, जाने तप ज्ञान विशेषा। प्रत्येक बुद्ध गुरण धारी, भये सिद्ध नमू हितकारी ॥११॥
ह्री प्रत्येकवुद्धऋद्धिसिद्धेभ्यो नम अयं ।। गरणधरसे समकित धारी, तुग दिव्यध्वनि अन्सारी। ज्ञानिनि सिरताज कहाये, भये सिद्ध सुजस हम गाये ॥१२॥
ॐ ह्रो भहं वोधबुद्ध भ्यो नमः अध्यं ।
॥१२॥
पूजा