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________________ छन्द कामिनी मोहन मात्रा २० जन्ममरणकष्टको टारि अमरा भये,जरादिरोगव्याधिपरिहार अजराभय? सिद्ध जयद्विविधि कर्ममल जार अमला भये, जयविधिटार संसार अचला भयो जय जगतवासतज जगतस्वामी भये,जय विनाशनाम थिरपरम नामी भये जयकुबुद्धिरूपतजि सुबुधिरूपा भये,जय निषधदोष तज सुगुरण भूपा भये कर्मरिपु नाशकर परम जय पाइए, लोकत्रयपूरि तुम सुजस घन छाइये। इन्द्रनागेन्द्र धर शीश तुम पद जजै, महा रागरसपाग मुनिगरण भज॥ विघनवन दहनकौं अघनघन पौन हो,सघन गुणरासके,बासको भौनहो। शिवतिय वशकरन मोहिनी मंत्र हो, काल च्यकार वैताल के यंत्र हो।' कोटिथित क्लेशको मेटि शिवकर रहो,उपलकोनकलहोअचलइकथल रहो स्वप्नमे हू न निजअर्थको पावही, जे महा खलन तुमध्यानधरि ध्यावही . आपके जाप बिन पापं सब भेंट ही, पापको तापको पाप कब मेंटही। ! "संत" निज दासको पास पूरी करो, जगतसे काढ निजचरणमें ले धरो। घता-जय अमल अनूपं शुद्ध, स्वरूपं, निखिल निरूपं धर्म धरा। प्रथम
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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