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बहिरंतर कै विधि रहित , परमातम पद पाय । निरविकार परमात्मा, नमूनम सुखदाय ॥२५॥ ___ॐ ह्री शुद्धपरमात्मने नम. अध्यं । हीन अधिक इक देशको, विकल विभाव उछेद । शुद्ध अनन्त दशा लई, नमूसिद्ध निरभेद ॥२६॥
ॐ ह्री शुद्धअनन्ताय नमः अध्यं । श्रोटक छन्द-तुमरागविरोध विनाश कियो, निजज्ञान सुधारस स्वाद लियो।
तुमपूरण शांतिविशुद्ध धरो, हमको इकदेश विशुद्ध करो॥२७॥
ॐ ह्री शुद्धशाताय नम अध्यं । विद पंडित नाम कहावत है, विद अन्त जु अन्तहि पावत है। निजज्ञान प्रकाश सु अन्त लहो, कुछ अंश न जानन माहिं रहो।
___ॐ ह्री शुद्धविदताय नमः अध्यं ।। वरणादिक भेद विडारन हो, परिणाम कषाय निवारन हो। मन इन्द्रिय ज्ञान न पावत हो, अति शुद्ध निरूपम ज्योति मही ।२६॥ ३२
ॐ ह्री शुद्धज्योतिजिनाय नम. अयं ।
पूजा