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पद्धडी छन्द-पुद्गल निरमापित वर्ण युक्त, विधि नाम रचित तासो विमुक्त सिद्ध पुरुषांकित चेतनमय प्रदेश, ते शुद्ध शरीर नमूहमेश ॥१५॥ वि० ___ॐ ह्री शुद्धशरीराय नमः अध्यं । ३० दोहा--पूरण केवल ज्ञान-गम, तुम स्वरूप निर्बाध ।
और ज्ञान जाने नहीं, नमो सिद्ध तज आध ॥१६॥
ॐ ह्री शुद्धप्रमेयाय नम अध्यं । दरशन ज्ञान सुभेद है, चेतन लक्षण योग। पूरण भई विशुद्धता, नमों शुद्ध उपयोग ॥१७॥
__ॐ ह्री शुद्धोपयोगाय नम. अध्यं । पद्धडी छन्द-परद्रव्य जनित भोगोपभोग, ते खेदरूप प्रत्यक्ष योग ।
निजरस स्वादन है भोगसार, सोभोगो तुम हम नमस्कार ॥
ॐ ह्री शुद्ध भोगाय नम. अध्यं । दोहा-निर्ममत्व युगपद लखो, तुम सब लोकालोक ।
शुद्ध ज्ञान तुमकों लखो, नमों शुद्ध अवलोक ॥१६॥ ॐ ह्री शुद्धावलोकाय नमः अध्यं ।
प्रथम
पुजा