________________
nnnnnnnn
एकेन्द्रिय आदिक जातभेद, हीनाधिक नामा प्रकृति छेद। सिद्ध संपूरण लब्धि विशुद्ध जात, हम पूजै है पद जोर हाथ ॥१०॥
____ ॐ ह्री शुद्धजाताय नम अयं । २९दोहा--महातेज आनन्दघन, महातेज परताप । ___ नमो सिद्ध निजगुरण सहित, दोपै अनुपम आप ॥११॥
ॐ ह्री शुद्धतपसे नम अध्यं । ६ पद्धढी छन्द-वर्णादिकको अधिकार नाहि, संथान आदि आकार नाहिं।।
___ अति तेपिड चेतन अखंड, नमूशुद्ध मूर्तिक कर्म खंड ॥१२॥ ___ॐ ह्री शुद्धमूर्तये नम अध्यं ।। बाहिज पदार्थ को इष्ट मान, नहिं रमत ममत तासो जुठान निज अनुभवरसमें सदालीन,तुम शुद्धसुखी हम नमन कीन।१३॥
__ॐ ह्री शुद्धसुखाय नम. अर्घ्य । दोहा--धर्म अर्थ अरु काम बिन, अन्तिम पौरुष साध ।
भये शुद्ध पुरुषारथी, नमू सिद्ध निरबाध ॥१४॥ ____ॐ ह्री शुद्धपौरुषाय नम अध्यं ।
unnnnnurunununrime
प्रथम