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अथ भिन्न २ बत्तीस गुणों के अर्ध । पद्धड़ी छन्द चेतन विभाव पुद्गल विकार, है शुद्ध बुद्ध तिस निमित टार। २७६ दृगबोध सुरूप सुभाव एह, नमू शुद्ध चेतना सिद्ध देह ॥१॥
___ॐ ह्री शुद्ध चेतनाय नम अध्यं । मिति आदि भेद विच्छेद कीन, छायक विशुद्ध निज भाव लीन।। निरपेक्ष निरन्तर निविकार, नम शुद्ध ज्ञानमय सिद्ध सार ॥२॥
ॐ ह्री शुद्धज्ञानाय नमः अध्यं । सर्वाग चेतना व्याप्तरूप, तुम हो चेतन व्यापक सरूप । परलेश न निज परदेश मांहि, नम सिद्ध शुद्ध चिद्रूप ताहि ॥३॥
ॐ ह्री शुद्धचिद्रूपाय नम अयं । अन्तरविधि उदय विपाक टार, तुम जातिभेद बाहिज विडार । निज परिणतिमे नहीं लेश शेष, नमूशुद्धरूप गुरणगरण विशेष ॥५॥
___ॐ ह्री शुद्धस्वरूपाय नमः अध्यं । ६ रागादिक परिणतिको विध्वंश, पाकुलित भाव राखो न अंश। १२७
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प्रथम