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जन्म मरण युत धरे न काय, रोगादिक संक्लेश न पाय। सिद्ध नित्य निरंजन निर अविकार, अव्याबाध नमो सुखकार ।।
ॐ ह्री अव्याबाधाय नम अध्यं । एक पुरुष अवगाह प्रजंत, राजत सिद्ध समूह अनंत । एकमेक बाधा नहिं लहै, भिन्न भिन्न निजगुण में रहै ॥६॥
ॐ ह्री अवगाहनगुणाय नम अध्यं ।। काययोग पर्यापति प्रान, अनवधि छिन छिन होवे हान । जरा कष्ट जग प्रानी लहै, नमों सिद्ध यह दोष न सहै ॥१०॥
ॐ ह्री अजराय नमः अध्यं । काल अकाल प्राणको नाश, पावै जीव मरणको त्रास । तासौ रहित अमर अविकार, सिद्ध समूह नमसुखकार ॥११॥
ॐ ह्री अमराय नम. अध्यं । गुण गुण प्रति है भेद अनन्त, यो अथाह गुणयुत भगवंत । है है परमाण अगोचर तेह, अप्रमेय गुण बंदू एह ॥१२॥ ड ॐ ह्रो अप्रमेयाय नमः अध्यं ।
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प्रथम
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