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________________ सिद्ध० ३८४ सरज हो निज ज्ञान घन, ग्रहरण उपद्रव नाहिं । बैखटके शिवपंथ सब, दीखत है जिस माहिं ह्रीहनिरावरणज्ञानघनजिनायनम • वि० जोग योग संकल्प सब, हरो देहको साथ । रहो अकंपित थिर सदा,मै नाऊं निज माथा ह्रीमह उच्छिन्नयोगाय नम अध्यं ६०२ जोग सुथिरताको हरे, करै आगमन कर्म। तुम तासों निर्लेप हो, नशौ मोहमद शर्म ॥ॐ ह्रीग्रहयोगकृतनिर्लेपायनम.अध्य।१०३ निज प्रातममे स्वस्थ है, स्वपद योग रमाय । निर्भय तम निर इच्छु हो, नमजोरकर पाय ॥ॐ ह्रीग्रह स्वस्थनयोगरतजिनायनम • , महादेव गिरिराज पर, जन्म समै जिम सूर।। योग किरण विकसात हो,शोकतिमिरकरदूर॥ ह्रींअहगिरिसयोगजिनायनम अर्ण सूक्ष्म निज परदेश तन, सूक्ष्म क्रिया परिणाम । चितवत मन नहिंवचचले,राजतहोशिवधामहीमहसूक्ष्मीकृतवपु क्रियायनम अध्यं सूक्ष्म तत्त्व परकाश है, शुभ प्रिय वचनन द्वार। ३८४ भविजनको आनंदकरि, तीनजगत गुरुसार॥ह्रींग्रह मूक्ष्मवामितयोगाय नम अध्य अष्टम
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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