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________________ सिद्ध. वि० ३७५ स्वसंवेदन शुद्ध धराय, अन्य जीव हैं मलिन कुभाय । सिद्ध० ॥ ॐ ह्रीं स्वसवेदनज्ञानयादिने नमः पद्म । ८३८॥ द्वादश सभा करें सतकार, आदर योग वैन सुखकार | सिद्ध० ॥ ॐ ह्रीं ममत्रसरण - मापनमा ८२ आगम अक्ष अनक्ष प्रमान, तीन भेदकर तुम पहचान । सिद्ध० ॥ ॐ ही यह प्रमाणाय नमः ॥ ४० ॥ विशद शुद्ध मति हो साकार, तुमको जानत है सु विचार | सिद्ध० ॥ ॐ ह्रीं प्रहं प्रध्यक्षप्रमाणाय नमः ||६८१ ॥ नयसापेक्षक है शुभ वैन, है प्रशंस सत्यारथ ऐन । सिद्ध० ॥ ॐ ह्रीं पहुं स्याद्वादवादिनं नम ध्यं ॥६२॥ लोकालोक क्षेत्रके मांहि, श्राप ज्ञान है सव दरशाहिं । सिद्ध० ॥ ॐ ह्रीं क्षेत्रमा म प ||८४३॥ अन्तर बाह्य लेश नहीं और केवल प्रातम मई घोर | सिद्ध० ॥ ॐ ही शुद्धात्मजिनाय नमः प्रप्यं ॥ २४४ ॥ अन्तिम पौरुष साध्यो सार, पुरुष नाम पायो सुखकार | सिद्ध० ॥ ही हे पुरुषार-जिनाय नमः यं ॥६४५॥ स्प्रष्टम पुत्रा ३७
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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