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सिद्ध.
वि०
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स्वसंवेदन शुद्ध धराय, अन्य जीव हैं मलिन कुभाय । सिद्ध० ॥
ॐ ह्रीं स्वसवेदनज्ञानयादिने नमः पद्म । ८३८॥
द्वादश सभा करें सतकार, आदर योग वैन सुखकार | सिद्ध० ॥
ॐ ह्रीं ममत्रसरण - मापनमा ८२
आगम अक्ष अनक्ष प्रमान, तीन भेदकर तुम पहचान । सिद्ध० ॥ ॐ ही यह प्रमाणाय नमः ॥ ४० ॥
विशद शुद्ध मति हो साकार, तुमको जानत है सु विचार | सिद्ध० ॥
ॐ ह्रीं प्रहं प्रध्यक्षप्रमाणाय नमः ||६८१ ॥
नयसापेक्षक है शुभ वैन, है प्रशंस सत्यारथ ऐन । सिद्ध० ॥ ॐ ह्रीं पहुं स्याद्वादवादिनं नम ध्यं ॥६२॥ लोकालोक क्षेत्रके मांहि, श्राप ज्ञान है सव दरशाहिं । सिद्ध० ॥
ॐ ह्रीं क्षेत्रमा म प ||८४३॥
अन्तर बाह्य लेश नहीं और केवल प्रातम मई घोर | सिद्ध० ॥
ॐ ही शुद्धात्मजिनाय नमः प्रप्यं ॥ २४४ ॥ अन्तिम पौरुष साध्यो सार, पुरुष नाम पायो सुखकार | सिद्ध० ॥ ही हे पुरुषार-जिनाय नमः यं ॥६४५॥
स्प्रष्टम पुत्रा ३७