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बाकी रहो न गुरण शुभ एक, ताको स्वाद न हो प्रत्येक। सिद्ध सिद्धसमूह जजू मनलाय, भव भवमे सुखसंपतिदाय ॥ .
ॐ ह्री प्रहं निरवशे गुणामृताय नमःप्रयं ।।८३१॥ ३७४६ नय सुपक्ष करि सांख्य कुवाव,तुम निरवाद पक्षकर वाद । सिद्ध०॥
ॐ ह्री अर्ह माख्यादिपक्षविध्वसजिनाय नम अध्यं ।।८३२॥ ६ सम्यग्दर्शन है तुम वैन, वस्तु परीक्षा भाखो ऐन । सिद्ध० ॥
ॐ ह्री अहं समीक्षकाय नम अध्यं 1८३३॥ धर्मशास्त्रके हो कर्तार, आदि पुरुष धारो अवतार । सिद्ध०॥
ॐ ह्री ग्रह आदि पुरुष जिनाय नम अध्यं ।।८३४।। नय साधत नयायक नाम, सो तुम पक्ष धरो अभिराम । सिद्ध०॥
ॐ ह्री अहं पविशतितत्त्ववेदकाय नम अध्यं ।।८३५॥ स्वपर चतुष्क वस्तुको भेद, व्यक्ताव्यक्त करो निरखेद । सिद्ध० ॥ अष्टम ॐ ह्री अहं व्यक्ताव्यक्तज्ञानविदे नम अध्यं ।।८३६।।
पूजा दर्शन ज्ञान भेद उपयोग, चेतनामय है शुभ योग । सिद्ध०॥ ३७४
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ॐ ह्रीं ग्रहं जानचैतन्यभेददृशे नम अध्यं ॥३७॥