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सिद्ध
वि०
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कर्मविषै संस्कार विधान, तीनलोकमे विस्तर जान । सिद्धसमूह० ॥ ॐ ह्री सिद्धसमूहेभ्यो नम भ्रष्ट ।। ७९३ ।।
धर्म उपदेश देत सुखकार, महाबुद्ध तुम हो अवतार । सिद्धसमूह० ॥
ॐ ह्रीं शुद्धबुद्धाय नमः श्रध्यं ।। ७१४ ।।
तीन लोकमे हो शशि सूर, निज किरणावलि करि तम चूर । सिद्ध० ॥
ॐ ह्री पहं तमोभेदने नमः श्रयं ॥ ७६५ ।।
धर्ममार्ग उद्योत करान, सब कुवादकी कर हो हान । सिद्ध० ॥ ॐ ह्री प्र धर्म मार्गदशकजिनाय नम मध्यं ॥ ७६६ ।।
सर्व शास्त्र मिथ्या वा सांच, तुम निज दृष्टि लियो है जांच | सिद्ध०
ॐ ह्री प्रसवशास्त्र निर्णायक जिनाय नमः श्रध्यं ॥७७॥
पंचमगति विन श्रेष्ठ न और, सो तुम पाय त्रिजग शिरमौर । सिद्ध०
ॐ ह्री श्रहं चमगतिर्जिनाय नम अध्यं । ७६८ ।।
श्रेष्ठ सुमति तुम्हीं हो एक, शिवमारग की जानो टेक | सिद्ध० ॥
ॐ ह्री श्रेष्ठसुमतिदात्रीजिनाय नम श्रध्यं ॥७६॥
वृष मर्जाद भली विधि, थाप, भविजन मेटे सब संताप | सिद्ध०
ॐ ह्रीं श्रीं सुगतये नमः अध्यं ॥ ८ ॥
अष्टम
पूजा
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