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मुनिजन अादर जोग हो, लोक सराहन योग। सुरनरपशु पानंद कर,सुभग निजातम भोग॥ ह्रीपहँ जनार्दनाय नम अध्यं ।७३८६
सब देवनके देव हो, महादेव विख्यात । सिद्ध ज्ञानामत सुखसों खिरै, पीवत भवि सुख पातहीअहंश्रीकण्ठायनम अध्य|७३६), वि० पाप पुञ्जका नाश करि, धर्म रीत प्रगटाय । ३६१ ३ तीन लोकके अधिपती,हमपर दया कराया। ह्रीग्रहं त्रिलोकाधिपणकराय नम.प्रध्यं ।
। स्वयं व्यापि जिन ज्ञान करि, स्वयं प्रकाश अनूप । । स्वयं भाव परमातमा, बंदू स्वयं सरूप ॥ही ग्रह स्वय प्रभवे नम अयं ७४१॥3
सब देवनके देव हो, महादेव है नाम । ३ स्वपर सुगंधित रूपहो,तुम पद करू प्रणाम।। ह्री ग्रहं लोकपालाय नम प्रध्यं ।७४२३
धर्मध्वजा जग फरहरै, सब जग माने आन। संबजगशीशनमेचरण, सब जगको सुखदान॥ह्री महं वृषमकेतवे नम प्रय।७४३॥ पूजा जन्म जरा मृत जीतिक, निश्चल अव्यय रूप । सुखसों राजत नित्य हो, बंदू हूं शिवभूप ॥हीमहं मृत्युञ्जयाय नम.अध्या७४४
सप्टम
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