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दिव्य रत्नमय ज्योतिहो, अमित अकंप अडोल। मनवांछित फलदाय हो, राजत अखय अमोल ॥ ह्रीग्रहमनवांछितफलदाय नम • देह धार जीवन मुकत, परमातम भगवान । सर्यसमान सुदीप्त धर, महा ऋषीश्वर जान।। ह्रीं पहनीवनमुक्तजिनाय नम अध्य स्व भय आदिकसे परै, पर भय आदि निवार। पर उपाधि बिन नित सुखी, बंदूभाव सम्हार । ह्रींपहं गतानदायनम अध्य७१२ है ईश्वर हो तिहुँ लोकके, परम पुरुष परधान। ज्ञानानन्द स्वलक्ष्मी, भोगत नित अमलान ॥ॐ ह्रीं महं विष्णवे नम.प्रध्यं ।७१३।। रत्नत्रय पुरुषार्थ करि, हो प्रसिद्ध जयवंत । कर्मशत्रको क्षय कियो, शीश नमें नित संत॥हीं पहँ त्रिविक्रमाय नम प्रध्य ७१ सूरज हो शिवराहके, कर्म दलन बल सूर।
अप्टम संशय केतुनि ग्रहणसम, महासहजसुखपूर ह्रींपहँमोक्षमार्गप्रकाशकादित्यरूप जिनाय, पूजा सुभग अनंत चतुष्टपद, सोई लक्षमी भोग। स्वामी हो शिवनारिके,नमूजोरि तिहुँ योग॥ ह्रीपर्ह श्रीपतये नम:मयं ।७१६॥
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