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प्रजापाल हित धार उर, शुभ मारग बतलाय । सिद्ध० सत्यारथ ब्रह्मा कहै, तुमरे बंदूपाय ॥ॐ ह्री अहँ प्रजापतये नम.अध्यं ।।७०३।। वि० गर्भ समय षट्मास ही, प्रथम इन्द्र हर्षाय।
रत्नवृष्टि नित करत है, उत्तम गर्भ कहाय ॥ ह्रीग्रहं हिरण्यगर्भाय नम.प्रयं ।७०४ तुम हि चार अनुयोगके, अंग कहै मुनिराज। तुमसो पूरण श्रुत सही, नान्तर मंगल काज ॥ ह्रीमहं वेदांगाय नम अध्य।।७०५॥ तुम उपदेश थकी कहै. द्वादशांग गरगराज । पूरण ज्ञाता हो तुम्हीं, प्ररणममै शिवकाज ॥ॐ ह्री अहं पूर्णवेदज्ञानाय नमःअध्यं । पार भये भवसिंधु के, तथा सुवर्ण समान । उत्तम निर्मल थुति धरै, नमत कर्ममल हान ॥ॐ ह्रीअहं भवसिंधुपारगायनम अध्यं । सुखाभास पर निमित्तते, पर उपाधिते होत । स्वतः सुभाव धरो सही, सत्यानन्द उद्योत॥ॐ ह्रीअहँ सत्यानन्दाय नम अध्यं ७.८ मोहादिक परबल महा, सो इसको तुम जीत । औरनकी गिनती कहां, तिष्ठो सदा अभीत।।ह्री प्रहं अजयाय नम अध्य'७०६।
अष्टम
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