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परम पूज्य परधान है, परम शक्ति प्राधार ।
सिद्ध परम पुरुष परमातमा, परमेश्वर सुखकार ॥ॐ ह्री परमेश्वराय नम ग्रर्घ्यं । ६१२॥ दोष प्रकोष प्ररोष हो, सम सन्तोष श्रलोष ।
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पंच परम पद धारियत, भविजनको परिपोष ॥ॐ ह्रीश्रविमलेशायनम प्रध्र्घ्यं६१३ पचकल्याणक युक्त है, समोसररण ले आदि ।
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इन्द्रादिक नितकरत है, तुम गुरणगरण अनुवाद ॥ ॐ ह्रीं प्रयशोधराय नमः मध्य । ६१४ कृष्ण नाम तीर्थेश है, भावी काल कहाय ।
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सुमति गोपियन संग रमत, निजलीला दर्शाय॥ॐ ह्री प्रहं कृष्णाय नम प्रयं । ६१५ । सम्यग्ज्ञान जु समति धर, मिथ्या मोह निवार । परहितकर उपदेश है, निश्चय वा व्यवहार ॥ह्रीग्रर्हं ज्ञानमतये नमःमध्य ,६१६ वीतराग सर्वज्ञ हैं, उपदेशक, हितकार | सत्यारथ परमारण कर, अन्य सुमति दातार ॥ह्री महं शुद्धमतये नमःश्रध्यें ॥६॥७
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मायाचार न शल्य है, शुद्ध सरल परिणाम । ज्ञानानंद स्वलक्षमी, भोगत हैं अभिराम ॥ ॐ ह्रींअहं, मद्राय नमः श्रर्घ्यं ।। ६१८ ।।
अष्टम
पूजा ३४३
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