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सिद्ध ध्यावत ह"
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अग्निदेव या अग्नि दिश, ताके देव विशेष । ध्यावत है तुम चरणयुग,इन्द्रादिक सुर शेष ॥ ह्रीमहंअग्निदेवाय नम.मध्य।६०५॥
विषय कषाय न रंच है, निरावरण निरमोह। १२१ इन्द्री मनको दमन कर, बंदूंसुन्दर सोह॥ॐ ह्री प्रहं सयमाय नम.अध्यं ॥६०६॥ ६.मोक्षरूप कल्याण कर, सुख-सागरके पार।
महादेव स्वशक्ति धर, विद्या तिय भरतार॥ॐह्रीं महं शिवाय नम अध्यं ।६०७॥ पुष्पभेट धरजजत सुर, निजकर अजुलि जोड़। कमलापति कर कमलमे, धरै लक्ष्मी होड़॥ह्री अहं पुष्पाजलये नमःअध्यं ।६०८। । पूरण ज्ञानानद मय, अजर अमर अमलान । अविनाशीध वअखिलपद,अधिकारीसबमान॥ह्रींप्रहं शिवगुणायनम अध्यं ।६०६ रोग शोक भय आदि विन, राजत नित प्रानन्द ।
अष्टम खेदरहित रतिरति विन, विकसत पूरणचंद्र ॥होंग्रह परमोत्साहजिनायनम पूजा जो गुरण शक्ति अनन्त है, ते सबै ज्ञान मझार।
३४२ ह्रीं मह ज्ञानाय नम मध्य ६११॥