________________
सिद्ध
awani
mar
पुनि हींकार बेढ्यो परम, सुर ध्यावत अरि नागको।
हवै केहरि सम पूजन निमित, सिद्धचक्र मंगल करो॥१५॥ वि० ॐ ह्री णमोसिद्धारण श्रीसिद्धपरमेष्ठिन् अत्रावतरावतर सवौषट् आह्वानन । प्रत्र तिष्ठ,
तिष्ठ ठ ठ स्थापन । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्, सन्निधिकरण । है दोहाः-सूक्ष्मादिक गुण सहित हैं, कर्म रहित निःशोग।
सकल सिद्ध पूजों सदा, मिट उपद्रव योग ।
___इति यत्रस्थापनार्थ पुष्पाजलि क्षिपेत् ।
॥ अथाष्टक-(चाल-नन्दीश्वर द्वीप पूजा की)। शीतल शुभ सुरभि सु नीर, कञ्चन कुम्भ भरों। पाऊँ भवसागर तीर, प्रानन्द भेट धरो ॥ अन्तरगत अष्ट स्वरूप, गुरणमई राजत है। नम् सिद्धचक्र शिव-भूप, अचल विराजत हैं ॥१॥ ॐ ह्री णमो सिद्धाण श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नमः श्रीसमत्तणाण-दमण-वीरज सुहमत्तहेव" अवग्गाहणं अगुरुल घुमव्वावाह अष्टगुणमयुक्ताय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥
चन्दन तुम वन्दन हेत, उत्तम मान्य गिना।
RAN
प्रथम