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महा भूति इस जगतमे, धारत हो निरभंग। सिद्ध सब विभूति जग जीतिक, पायो सुख सरवंग॥ ही अहं जगत्प्रभवे नम अध्यं ।४३७ वि० मुनि मन करण पवित्र हो, सब विभावको नाश ।
तुमको अंजुलि जोरकर, नमूहोत अघनाश ॥ ही अहं पवित्राय नम अध्यं ।४३८। मोक्ष रूप परधान हो, ब्रह्मज्ञान परवीन । बंध रहित शिव-सुख सहित, नमैसंत प्राधीन ॥ ही महंपराक्रमायनम प्रय। ४३६ जामें जन्म मरण नहीं, लोकोत्तर कियो वास। अचल सुथिर राजै सदा, निजानंद परकाश ॥ॐ ह्री ग्रह परत्राय नम अयं ।।४।। मोहादिक रिपु जीतके, विजयवन्त कहलाय । जैत्र नाम परसिद्ध है, बंदू तिनके पाय ॥ॐ ह्री अहं जैत्रे नमः अर्घ्य । ४४१।। रक्षक हो षट् कायके, कर्म शत्रु क्षयकार ।
र॥ॐ ह्री अहं जिष्णवे नम अध्यं । ४४२॥ करता हो विधि कर्मके, हरता पाप विशेष । पुन्यपाप सु विभाग कर, भूम नहीं राखो लेश॥ॐ ह्रीमह कर्त्रे नम प्रध्य ।४४३।
अष्टम
पूजा