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जिन शासनके अधिपती, शिवमारग बतलाय । वा भविजन संतुष्ट करि, बंदू तिनके पाय ॥ॐ ह्री अहं श्रुतपतये नम अध्यं ।३६.६ धारण हो उपदेशक, केवल ज्ञान संयुक्त । शिवमारग दिखलात हो, तुमको बंदन युक्त ॥ॐ ह्री अहंश्रुतघृतायनम अध्य ३६१ जैसो है तैसो कहो, परम्पराय सुरीत ।
सत्यारथ उपदेशतें, धर्म मार्गकी रीत ॥ॐ ह्री मह घ्र वश्रुतये नमःप्रयं ॥३६२।। j मोक्ष मार्गको देखियो, और न को दिखलाय। है तुम सम हितकारक नहीं, बंदूहूँतिन पांय॥हीमह निर्वाणमार्गोपदेशकायनमः ! । स्वर्ग मोक्ष मारग कहो, यति श्रावकको धर्म । । तुमको बन्दत सुख महा, लहैब्रह्मपद पर्म ॥ हीग्रह'यतिश्रावकमार्गदेशकापनमोऽयं, तत्त्व अतत्त्वसु जानियो, तुम सब ही परतक्ष ।
अष्टम निज प्रातम संतुष्ट हो, देखो लक्ष अलक्ष ॥ॐ ह्रीं अहं तत्वमार्गदृशे नम मध्यं। ३६४ ३ पूजा । सार तत्त्व वर्णन कियो, अयथार्थ मत नाश ।
5३०७ स्वपर प्रकाशक हो महा, बंदे तिनको दास ॥ॐ ह्री अहँसारतत्त्वयथार्थाय नमःप्रयं ।
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