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निर अक्षर वाणी खिर, दिव्य मेघ की गर्ज। सिद्ध ई अक्षरार्थ हो परिणवै, सुन भव्यन मन अज॥ॐहीं अहंदिव्यध्वनयेनम'प्रय।३१८॥ वि० । नय प्रमाण नहीं हतत है, तुम परकाशे अर्थ। ३०१ शिवसखके साधन विषै, नहीं गिनत है व्यर्थ ॥ ही पहं अव्याहतार्थाय नम अध्यं०
करै पवित्र सु प्रात्मा, अशुभ कर्ममल खोय । पहुँचावै ऊंची सुगति, तुम दिखलायो सोय ॥ॐ ह्रीमहं पुण्यवाचे नम अध्यं ॥३२॥ तत्त्वारथ तुम भासियो, सम्यक विष प्रधान । मिथ्या जहर निवारणं, अमृत पान समान॥ॐ ह्रीप्रहं प्रर्यवाचे नमः अध्य।।३२१॥ देव अतिशयसो खिरत ही, अक्षरार्थ मय होय । दिव्यध्वनि निश्चयकरै,संशय तमको खोय ॥ॐ ह्रींमहंप्रदमागधीयुक्तयेनम प्रध्या३२२१ । सब जीवनको इष्ट है, मोक्ष निजानन्द वास। । सो तुमने दिखलाइयो, संशय मोह विनाश ॥ ॐ ह्रीं पहँइष्टवाचे नम अयं ।।३२३॥ अष्टम । नय प्रमाण ही कहत है, द्रब्य पर्याय सुभेद।
अनेकांत साधै सही, वस्तु भेद निरखेद ॥ॐ ह्रीप्रहं प्रनेकातदशिनेनम.अयं ।।३२४॥
पुजा